गङ्गा नदी

मैथिली विकिपिडियासँ, एक मुक्त विश्वकोश
(गंगा नदीसँ पुनर्निर्देशित)

गङ्गा
The Ganges (गङ्गा मइया)
नदी
बनारसमे गङ्गा
देशसभ  भारत,  बंगलादेश
राज्य उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बङ्गाल
सहायक नदीसभ
 - बामा रामगङ्गा, गोमती, सरजू, गण्डकी नदी, बागमती नदी, कोशी नदी, महानन्दा
 - दाहिना यमुना, तमसा, सोन, पुनपुन
शहरसभ ऋषिकेश, हरिद्वार, फर्रूखाबाद, कानपुर, जाजमऊ, इलाहाबाद, मिर्जापुर, बनारस, गाजीपुर, बक्सर, बलियाँ, पटना, हाजीपुर, मुँगेर, भागलपुर
स्रोत गङ्गोत्री हिमानी, सतोपनाथ हिमानी, खटलिङ्ग हिमखण्ड, आ किछ पर्वत चोटीसँ पिघैलक बहल पानि जाहि सँ नन्दा देवी, त्रिशूल केदारनाथ, नन्दा कटकामेत
 - स्थान उत्तराखण्ड, भारत
 - उचाई ३,८९२ मी (१२,७६९ फिट)
 - निर्देशाङ्क ३०°५९′उ॰ ७८°५५′पू॰ / ३०.९८३°N ७८.९१७°E / 30.983; 78.917
मुख गङ्गासागर, गङ्गा डेल्टा
 - स्थान बङ्गालक खाड़ी, बंगलादेश & भारत
 - उचाई ० मी (० फिट)
 - निर्देशाङ्क २२°०५′उ॰ ९०°५०′पू॰ / २२.०८३°N ९०.८३३°E / 22.083; 90.833निर्देशाङ्क: २२°०५′उ॰ ९०°५०′पू॰ / २२.०८३°N ९०.८३३°E / 22.083; 90.833
लम्बाई २,५२५ किमी (१,५६९ माइल)
बेसिन १०,८०,००० किमी (४,१६,९९० वर्ग मिटर)
निर्वहन फरक्का बैराज
 - औषत १६,६४८ मी/से (५,८७,९१९ क्यु फिट/से) [१]
 - उच्च ७०,००० मी/से (२४,७२,०२७ क्यु फिट/से)
 - न्यून २,००० मी/से (७०,६२९ क्यु फिट/से)
अन्य स्थानमे निर्वहन (औषत)
 - बङ्गाल खाड़ी ३८,१२९ मी/से (१३,४६,५१३ क्यु फिट/से) [१]
नदी थाला: गङ्गा (नारङ्गी), ब्रह्मपुत्र (बैंगनी), आ मेघना (हरियर)।

गङ्गा नदी या गङ्गे एसियाक पैग नदीसभमे सँ एक तथा भारतबङ्गलादेश भऽ प्रवाहित होमएवाला एक पवित्र हिन्दू नदी छी । करीब २५२५ किलोमिटर (१५६९ मेइल) लम्बा ई नदी हिमालयक पश्चिमी भागमे अवस्थित भारतक उत्तराखण्डसँ निकैल दक्षिण पूर्वदिस बहैत भारतक उत्तरी समथर भूभाग होइत बङ्गलादेश प्रवेश करैत अछि आ अन्तिममे बङ्गालक खाडीमे जा समुद्रमे मिलैत अछि । ई नदी भारतक एकटा महत्वपूर्ण नदी तथा विश्वक सम्पूर्ण हिन्दू धर्मावलम्बीसभक आस्थाक एकटा केन्द्र छी । नदीमे बहैवाला पानि लगायत अन्य वस्तुसभक मात्राक आधारमे ई नदी विश्वक तेसर स्थानमे वर्गीकृत अछि ।[२]

गङ्गा नदीद्वारा भारतक उत्तराखण्डमे हिमालयसँ भऽ बङ्गालक खाडीक सुन्दरवन धरिक विशाल भूभागकें सिचाई करैत अछि । ई भारतक प्राकृतिक सम्पदा मात्र नै भऽ, आम जनताक भावनात्मक आस्थाक आधार सेहो छी । २,०७१ किलोमिटरधरि भारत तथा बंगलादेशमे अपन लम्बा यात्रा तय करैत ई सहायक नदीसभक संगे दस लाख वर्ग किलोमिटर क्षेत्रफलक अति विशाल उब्जाउ मैदानक रचना करैत अछि । सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक आ आर्थिक दृष्टिसँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गङ्गाक ई मैदान अपन बेसीतर जनसङ्ख्याक कारण सेहो चिन्हल जाइत अछि । १०० फिट (३१ मी)क अधिकतम गहिराई भेल ई नदी भारतमे पवित्र मानल जाइत अछि तथा एकर उपासना माता आ देवीक रूपमे कएल जाइत अछि । भारतीय पुराण आ साहित्यमे अपन सौन्दर्य आ महत्वक कारण बारम्बार आदरक साथ गङ्गा नदीकें प्रति विदेशी साहित्यमे सेहो प्रशंसा आ भावुकतापूर्ण वर्णन कएल गेल अछि ।

ई नदीमे माछ तथा सर्पसभक अनेक प्रजाति तँ पाबल जाइते अछि एकर अलावा मिठगर पानिक दुर्लभ डल्फिन सेहो भेटल अछि । ई कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलसभ तथा उद्योगसभक विकासमे महत्त्वपूर्ण योगदान दैत अछि तथा अपन तटमे बैसल शहरसभकें जल आपूर्ति सेहो करैत अछि । एकर तटमे विकसित धार्मिक स्थल आ तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्थाक विशेष अङ्ग छी । एकर उपर बनल पुल, बाँध, नदी परियोजनासभ भारतक बिजली, पानि आ कृषिसँ सम्बन्धित आवश्यकताकें आपूर्ति करैत अछि । वैज्ञानिकसभ कहैत अछि कि ई नदीक पानिमे ब्याक्टिरिइफेज नामक विषाणु होइत अछि जाहिद्वारा जीवाणुसभ आ अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवसभकें जीवित नै रहैलेल देत अछि । गङ्गाक ई असीमित शुद्धीकरण क्षमता आ सामाजिक श्रद्धा रहला बादो एकर प्रदूषण रोकल नै जा सकल अछि । एकर पानिकें सफा करैलेल विभिन्न प्रयत्न जारी अछि मुदा सफाईकें अनेक परियोजनाक क्रममे नवम्बर, सन् २००८मे भारत सरकारद्वारा एकरा भारतक राष्ट्रिय नदीक रूपमे घोषणा केनए अछि ।

उद्गम[सम्पादन करी]

भागीरथी नदी, गङ्गोत्रीमे

गङ्गा नदीक मुख्य शाखा भागीरथी छी जे कुमायूँमे हिमालयक गोमुख नामक स्थानमे गङ्गोत्री हिमतालसँ प्रवाहित होइत अछि ।[३] गङ्गाक ई उद्गम स्थलक उचाई ३१४० मिटर अछि । एहि ठाम गङ्गाकें समर्पित एकटा मन्दिर सेहो अछि । गङ्गोत्री तीर्थ, शहरसँ १९ किलोमिटर उत्तर तरफक ३,८९२ मिटर (१२,७७० फिट)क उचाईमे ई हिमतालक उद्गम अछि । ई हिमताल २५ किलोमिटर लम्बा आ ४ किलोमिटर चौडा आ लगभग ४० मिटर उंच अछि । ई हिमतालसँ भागीरथी एकटा छोट गुफा जका मुखमे अवतरित होइत अछि । एकर जलस्रोत ५००० मिटर उचाईमे अवस्थित एक बेसिन अछि । ई बेसिनकें मूल पश्चिमी ढलानक सन्तोपन्थक शिखरमे अछि । गौमुखक रस्तामे ३,६०० मिटरकें उचाईमे अवस्थित चिरबासा गाउँमे विशाल गोमुख हिमतालक दर्शन होइत अछि ।[४] ई हिमतालमे नन्दा देवी, कामत पर्वत तथा त्रिशुल पर्वतक बरफ पिघैल आबैत अछि । यद्यपि गङ्गाक आकार लेबक लेल अनेक छोट धारासभक योगदान अछि मुदा ६ पैग आ ओकर सहायक ५ छोट धारासभक भौगोलिक आ सांस्कृतिक महत्त्व प्रबल अछि । अलकनन्दाक सहायक नदी धौली, विष्णु गङ्गा तथा मन्दाकिनी छी । धौली गङ्गाक अलकनन्दासँ विष्णु प्रयागमे मिलन होइत अछि । ई १,३७२ मिटरक उचाईमे अवस्थित अछि । याह प्रकार २,८०५ मिटर उंच नन्द प्रयागमे अलकनन्दाक नन्दाकिनी नदीसँ सङ्गम होइत अछि । एकरबाद कर्ण प्रयागमे अलकनन्दाक कर्ण गङ्गा वा पिन्डर नदीसँ सङ्गम होइत अछि । फेर ऋषिकेशसँ १३९ किलोमिटर दुर अवस्थित रुद्र प्रयागमे अलकनन्दा मन्दाकिनी नदीसँ मिलैत अछि। एकरबाद भागीरथी आ अलकनन्दा १,५०० फिटमे अवस्थित देव प्रयागमे मिलैत अछि आ एतयसँ ई सम्मिलित जल-धारा गङ्गा नदीक नामसँ अगाडी प्रवाहित होइत अछि । याह पाँच प्रयागसभक सम्मिलित रूपकें पञ्च प्रयाग कहल जाइत अछि ।[३] ई प्रकार २०० किलोमिटरक सकस पहाडी रस्ता तय करि गङ्गा नदी ऋषिकेश होइत पहिल बेर मैदानकें हरिद्वारमे स्पर्श करैत अछि ।

गङ्गाक मैदान[सम्पादन करी]

त्रिवेणी-सङ्गम, प्रयाग

हरिद्वारसँ लगभग ८०० किलोमिटर मैदानी यात्रा करैत गढमुक्तेश्वर, सोरोन, फर्रुखाबाद, कन्नौज, बिठूर, कानपुर होइत गङ्गा इलाहाबाद (प्रयाग) पहुँचैत अछि । एतय एकर सङ्गम यमुना नदीसँ होइत अछि । ई सङ्गम स्थल हिन्दुसभक एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ छी । एकरा तीर्थराज प्रयाग सेहो कहल जाइत अछि । एकर बाद हिन्दू धर्मक प्रमुख मोक्षदायिनी नगरी काशी (वाराणसी)मे गङ्गा एक वक्र लैत अछि, जहि ठामसँ ई एतय उत्तरवाहिनी नामद्वारा चिनहल जाइत अछि । एतयसँ गङ्गा मीरजापुर, पटना, भागलपुर होइत पाकुर पहुँचैत अछि । एतय पहुँचैत पहुँचैत गङ्गामे बहुतेक सहायक नदीसभ, जना- सोन, गण्डक, घाघरा, कशी आदि मिल जाइत अछि । भागलपुरमे राजमहलक पहाडसभसँ ई दक्षिणवर्ती होइत अछि । पश्चिम बङ्गालक मुर्शिदाबाद जिलाक गिरिया नामक स्थान नजदिके गङ्गा नदी २ शाखासभमे विभाजित होइत अछि- भागीरथी आ पद्मे । भागीरथी नदी गिरियासँ दक्षिण तरफ बहैत अछि तँ पद्मे नदी दक्षिण-पूर्व तरफ बहैत फरक्का बाँध (१९७४ निर्मित)सँ होइत बंगलादेशमे प्रवेश करैत अछि । एतयसँ गङ्गाक डेल्टा भाग शुरू होइत अछि । मुर्शिदाबाद शहरसँ हुगली शहरधरि गङ्गाक नाम भागीरथी नदी तथा हुगली शहरसँ मुहानेधरि गङ्गाक नाम हुगली नदी अछि । गङ्गाक ई मैदान मूलत: एक भू-अभिनति खदहा छी जाकार निर्माण मुख्य रूपद्वारा हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रियाक तेसर चरणमे लगभग ६-४ करोड वर्ष पहिने भेल विश्वास अछि । याह मैदानसभमे जलस्रोतक औसत गहिराई १,००० सँ २,००० मिटर अछि ।

गङ्गाक ई घाटीमे एकटा एहन सभ्यताक उद्भव आ विकास भेल जकर प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवमयी आ वैभवशाली अछि ।

चित्र दीर्घा[सम्पादन करी]


टिप्पणी[सम्पादन करी]

क.    ^ इंदो किं अंदोलिया अमी ए चक्कीवं गङ्गा सिरे। .................एतने चरित्र ते गंग तीरे।
ख.    ^ कइ रे हिमालइ माहिं गिलउं। कइ तउ झंफघडं गंग-दुवारि।..................बहिन दिवाऊँ राइ की। थारा ब्याह कराबुं गंग नइ पारि।
ग.    ^ प्रागराज सो तीरथ ध्यावौं। जहँ पर गंग मातु लहराय।। / एक ओर देखि जमुना आई। दोनों मिलीं भुजा फैलाय।। / सरस्वती नीचे देखि निकली। तिरबेनी सो तीर्थ कहाय।।
घ.    ^ कज्जल रूप तुअ काली कहिअए, उज्जल रूप तुअ बानी। / रविमंडल परचण्डा कहिअए, गङ्गा कहिअए पानी।।
ङ.    ^ सुकदेव कह्यो सुनौ नरनाह। गङ्गा ज्यौं आई जगमाँह।। / कहौं सो कथा सुनौ चितलाई। सुनै सो भवतरि हरि पुर जाइ।।
च.    ^ देवनदी कहँ जो जन जान किए मनसा कहुँ कोटि उधारे। / देखि चले झगरैं सुरनारि, सुरेस बनाइ विमान सवाँरे।
          पूजाको साजु विरंचि रचैं तुलसी जे महातम जानि तिहारे। / ओक की लोक परी हरि लोक विलोकत गंग तरंग तिहारे।।(कवितावली-उत्तरकाण्ड १४५)
          ब्रह्म जो व्यापक वेद कहैं, गमनाहिं गिरा गुन-ग्यान-गुनी को। / जो करता, भरता, हरता, सुर साहेबु, साहेबु दीन दुखी को।
          सोइ भयो द्रव रूप सही, जो है नाथ विरंचि महेस मुनी को। / मानि प्रतीति सदा तुलसी, जगु काहे न सेवत देव धुनी को।।(कवितावली-उत्तरकाण्ड १४६)
          बारि तिहारो निहारि मुरारि भएँ परसें पद पापु लहौंगो। / ईस ह्वै सीस धरौं पै डरौं, प्रभु की समताँ बडे दोष दहौंगो।
          बरु बारहिं बार सरीर धरौं, रघुबीरको ह्वै तव तीर रहौंगो। / भागीरथी बिनवौं कर जोरि, बहोरि न खोरि लगै सो कहौंगो।।(कवितावली-उत्तरकाण्ड १४७)[५]
छ.    ^ पावन अधिक सब तीरथ तैं जाकी धार, जहाँ मरि पापी होत सुरपुर पति है। / देखत नैं जाकौ भलो घाट पहचानियत, एक रूप बानी जाके पानी की रहति है।
          बडी रज राखै जाकौं महाधीर तरसत, सेनापति ठौर-ठौर नीकीयै बहति है। / पाप पतवारि के कतल करिबेको गङ्गा, पुण्य की असील तरवारि सी लसति है।।--सेनापति
ज.    ^ अच्युत चरण तरंगिणी, शिव सिर मालति माल। हरि न बनायो सुरसरी, कीजौ इंदव भाल।।--रहीम
झ.    ^ "गङ्गा नदीक सम्बन्धमे नेहरू" -जवाहरलाल नेहरू

सन्दर्भ सामग्रीसभ[सम्पादन करी]

  1. १.० १.१ कुमेर, राकेश; सिंह, आर डी; शर्मे, के डी (10 सितंबर 2005)। "Water Resources of India" [भारतके जल संसाधन] (PDF)करेंट साइंस। बंगलुरु: करेंट साइंस एसोशियेशन। pp. 794–811। अन्तिम पहुँच 29 नवंबर 2015 {{cite web}}: Check date values in: |accessdate=|date= (help)
  2. Kumar, Rakesh; Singh, R.D.; Sharma, K.D. (2005-09-10)। "Water Resources of India" (PDF)Current Science। Bangalore: Current Science Association। 89 (5): 794–811। अन्तिम पहुँच 2013-10-13
  3. ३.० ३.१ "उत्तरांचल-एक परिचय"। टीडीआईएल। मूल (एचटीएम)सँ 2008-06-12 कऽ सङ्ग्रहित। अन्तिम पहुँच 2016-12-26 {{cite web}}: Unknown parameter |accessmonthday= ignored (help); Unknown parameter |accessyear= ignored (|access-date= suggested) (help); Unknown parameter |dead-url= ignored (|url-status= suggested) (help)
  4. "गङ्गोत्री" (एचटीएम)। उत्तराखंड सरकार। {{cite web}}: Unknown parameter |accessmonthday= ignored (help); Unknown parameter |accessyear= ignored (|access-date= suggested) (help)
  5. तुलसीदास (संवत २०५८). कवितावली. गोरखपुर: गीताप्रेस. प॰ १३६ देखि १३७. 

बाह्य जडीसभ[सम्पादन करी]

एहो सभ देखी[सम्पादन करी]