पतञ्जलि

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पतञ्जलि

हरिद्वारमे रह पतञ्जलिक शालिक
उपनाम:महाभाष्यकार
जन्म:
कार्यक्षेत्र:
पहिलो कृति:महाभाष्य
महाभाष्यकार योगसूत्रकार
पतञ्जलि क मूर्ति

पतञ्जलि योगसूत्रक रचनाकार छथि जे हिन्दूसभक छः दर्शन ( न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग,मीमांसा, वेदान्त)मे एकटा छी। भारतीय साहित्यमे पतञ्जलि लिखने ३ मुख्य ग्रन्थसभ पावैत अछि योगसूत्र, अष्टाध्यायीमे भाष्य, आ आयुर्वेद ग्रन्थ। कुछ विद्वानसभक मत अछि कि ई तीनटा ग्रन्थसभ एके व्यक्तिसँ लिखने अछि ; आनोके धारणा अछि ई यी ग्रन्थसभ विभिन्न व्यक्तिसभ लिखने छथि। पतञ्जलि पाणिनिक अष्टाध्यायीउपर अपन टीका लेखने अछि जेकरा महाभाष्य कहैत अछि (महा+भाष्य(समीक्षा,टिप्पणी,विवेचना,आलोचना)। ई ग्रन्थसभक निर्माणकाल २०० ई० पू० निर्धारण केने अछि ।

जीवन[सम्पादन करी]

पतञ्जलि काशीमे ईसा पूर्व दोसर शताब्दीमे छल । उनकर जन्म गोनारद्य (गोनिया)मे भेल छल मुदा ओ काशीक नागकूपमे बसल छल । ई व्याकरणाचार्य पाणिनीक शिष्य छल । श्रावण कृष्ण पञ्चमी (नागपंचमी)क दिन हिन्दू धर्मावलम्वीसभक घरमे नागके चित्र बनावैके चलन अछि कियाकी उनकर जन्म एही दिन भेल आ हुनका शेषनागक अवतार मानैत अछि।

योगदान[सम्पादन करी]

पतञ्जलि महान् चिकित्सक छल आ हुनका 'चरक संहिता'क परचयिता मानैत अछि। 'योगसूत्र' पतञ्जलिक प्रमुक ग्रन्थ छी। पतञ्जलि रसायन विद्याक विशिष्ट आचार्य छल - अभ्रक विंदास, अनेक धातुयोग आ लौहशास्त्र उनकर देन छी । पतञ्जलि संभवत: पुष्यमित्र शुंग (१९५-१४२ ई.पू.)क शासनकालमे छल । राजा भोज हुनका तनक साथ मनक सेहो चिकित्सक कहल जाइत अछि।

योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं शारीरस्य च वैद्यकेन।
योऽपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पर जलिं प्रा जलिरानतोऽस्मि।।

(अर्थात् चित्त-शुद्धिक लेल योग (योगसूत्र), वाणी-शुद्धिक लेल व्याकरण (महाभाष्य) आ शरीर-शुद्धिक वैद्यकशास्त्र (चरकसंहिता) दऽ वाले मुनिश्रेष्ठ पतञ्जलिके प्रणाम ! )

ई.पू. द्वितीय शताब्दीमे 'महाभाष्य'क रचयिता पतञ्जलि काशी-मण्डलक निवासी छल । मुनित्रयक परम्परामे ओ अन्तिम मुनि छल । पाणिनी पछा पतञ्जलि सर्वश्रेष्ठ स्थानक अधिकारी पुरुष मानैत अछि। ओ पाणिनी व्याकरणक महाभाष्यक रचना करै एकरा स्थिरता प्रदान केलक। ओ अलौकिक प्रतिभाक धनी छल व्याकरणक अतिरिक्त अन्य शास्त्रसभमे सेहो उनकर समान रूप अधिकार छल । व्याकरण शास्त्रमे उनकर बातके अन्तिम प्रमाण मानैत अछि। ओ अपन समयक जनजीवनक पर्याप्त निरीक्षण केने छल । अत: महाभाष्य व्याकरणक ग्रन्थ हुनकर साथ-साथ तत्कालीन समाजक विश्वकोश सेहो छल । पतञ्जलिके शेषनागक अवतार मानैत अछि। द्रविड देशक सुकवि रामचन्द्र दीक्षित अपन 'पतञ्जलि चरित' नामक काव्य ग्रन्थमे उनकर चरित्र के सम्बन्धमे कुछ नये तथ्यों की सम्भावनाओंको व्यक्त कएल गेल अछि। उनकर अनुसार आदि शंकराचार्य के पितामह गुरू आचार्य गौडपाद पतञ्जलिक शिष्य छल मुदा तथ्यसभक अभावसँ ई बातक पुष्टि नै होएत।

प्राचीन विद्यारण्य स्वामी अपन ग्रन्थ 'शंकर दिग्विजय'मे आदि शंकराचार्यमे गुरू गोविन्द पादाचार्यके पतञ्जलिक रूपान्तर मानने अछि। ई प्रकार उनकर सन्बम्ध अद्वैत वेदान्तक साथमे जोडलक ।

काल निर्धारण[सम्पादन करी]

पतञ्जलिक समय निर्धारणक सम्बन्धमे पुष्यमित्र कण्व वंशक संस्थापक ब्राह्मण राजाक अश्वमेध यज्ञसभक घटनाके लऽ सकै छी। ई घटना ई.पू. द्वितीय शताब्दीक छी। एकर अनुसार महाभाष्यक रचनाक काल ई.पू. द्वितीय शताब्दीक मध्यकाल अथवा १५० ई.पूर्व बमानैत अछि। पतञ्जलिक एकमात्र रचना महाभाष्य छी जे उनकर कीर्तिके अमर बनावैके लेल पर्याप्त अछि। दर्शन शास्त्रमे शंकराचार्यके जे स्थान 'शारीरिक भाष्य'क कारण प्राप्त अछि, ओही स्थान पतञ्जलिके महाभाष्यक कारण व्याकरण शास्त्रमे प्राप्त अछि। पतञ्जलि ई ग्रन्थक रचना करै पाणिनीक व्याकरणक प्रामाणिकतामे अन्तिम मोहर लगालक ।

सन्दर्भ सामग्रीसभ[सम्पादन करी]

बाह्य जडीसभ[सम्पादन करी]

एहो सभ देखी[सम्पादन करी]