"मत्स्य अवतार" के अवतरणसभमे अन्तर

मैथिली विकिपिडियासँ, एक मुक्त विश्वकोश
No edit summary
No edit summary
पङ्क्त्ति २: पङ्क्त्ति २:
'''मत्स्य''' [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] धर्म अनुसार भगवान श्री [[विष्णु]]क अवतार मध्यक प्रथम अवतार छी । मत्स्यावतारमे भगवान बिष्णु माछाक रूप लेने छल ।
'''मत्स्य''' [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] धर्म अनुसार भगवान श्री [[विष्णु]]क अवतार मध्यक प्रथम अवतार छी । मत्स्यावतारमे भगवान बिष्णु माछाक रूप लेने छल ।
==मत्स्यावतार बर्णन==
==मत्स्यावतार बर्णन==
हिन्दू धर्म ग्रन्थक अनुसार प्राचिन कालमे सत्यव्रत नामक एक राजा छल । ओ पैग उद्धारवान आ भगवानक परम भक्त छल । एक दिन ओ कृतमाला नदीमे तर्पण करै लागल छल ओहि समय उनकर हातमे एक छोट [[माछलि]] आयल । माछा राजाके कहलक "हे! महाराज ई नदीक जिव तथा पैग माछसभ हमरा खालैत अत: अहा हमर रक्षा करु ।"
माछाक विन्ती सुन दयालु राजा सत्यव्रत माँछके अपन कमण्डलुमे राखलक । कुछ क्षणमे मत्स्य बढ कमण्डलुमे नै । ई देखेर उदारवादी सत्यव्रत मत्स्यके एक मट्कामे राएख । कुछ क्षणमेपछा मत्स्य बईढ मट्कामे सेहो नै अटल । ई देख राजा पुन: मत्स्यके एक तलाउमे राखलक । कुछ क्षणमे मत्स्य तलाउमे सेहो नै अटल । अन्तमे राजा सत्यव्रत हार माइन मत्स्यके समुद्रमे छोडलक । ई देख मत्स्य "महाराज ! समुद्रमे त बहुत पैग जलिय जिवसभ अछि ओसभ हमरा खालेत हमरा समुद्रमे नै छोडु" कहै विन्ती केलक । मत्स्यक ई मधुर वाणी सुन राजा मोहित भेल राजा भगवानक लिला छी थाह भेल । राजा हात जोर भगवान मत्यक प्रार्थना करै लगल ।
==सन्दर्भ सामग्रीसभ==
==सन्दर्भ सामग्रीसभ==
{{reflist}}
{{reflist}}

अन्तिम परिवर्तन १५:५३, ८ नवम्बर २०१७

भगवान बिष्णुक मत्स्य रूप

मत्स्य हिन्दू धर्म अनुसार भगवान श्री विष्णुक अवतार मध्यक प्रथम अवतार छी । मत्स्यावतारमे भगवान बिष्णु माछाक रूप लेने छल ।

मत्स्यावतार बर्णन

हिन्दू धर्म ग्रन्थक अनुसार प्राचिन कालमे सत्यव्रत नामक एक राजा छल । ओ पैग उद्धारवान आ भगवानक परम भक्त छल । एक दिन ओ कृतमाला नदीमे तर्पण करै लागल छल ओहि समय उनकर हातमे एक छोट माछलि आयल । माछा राजाके कहलक "हे! महाराज ई नदीक जिव तथा पैग माछसभ हमरा खालैत अत: अहा हमर रक्षा करु ।" माछाक विन्ती सुन दयालु राजा सत्यव्रत माँछके अपन कमण्डलुमे राखलक । कुछ क्षणमे मत्स्य बढ कमण्डलुमे नै । ई देखेर उदारवादी सत्यव्रत मत्स्यके एक मट्कामे राएख । कुछ क्षणमेपछा मत्स्य बईढ मट्कामे सेहो नै अटल । ई देख राजा पुन: मत्स्यके एक तलाउमे राखलक । कुछ क्षणमे मत्स्य तलाउमे सेहो नै अटल । अन्तमे राजा सत्यव्रत हार माइन मत्स्यके समुद्रमे छोडलक । ई देख मत्स्य "महाराज ! समुद्रमे त बहुत पैग जलिय जिवसभ अछि ओसभ हमरा खालेत हमरा समुद्रमे नै छोडु" कहै विन्ती केलक । मत्स्यक ई मधुर वाणी सुन राजा मोहित भेल राजा भगवानक लिला छी थाह भेल । राजा हात जोर भगवान मत्यक प्रार्थना करै लगल ।

सन्दर्भ सामग्रीसभ

बाह्य जडीसभ

एहो सभ देखी