न्युटनक गति नियम

मैथिली विकिपिडियासँ, एक मुक्त विश्वकोश

न्युटनक गतिक नियम, आङ्गल भौतिकशास्त्री सर आइसक न्युटन द्वारा देल तीनटा नियमक समुह थिक। ई नियमसभ वस्तुक गति आ ओहि पर लागल बलक मध्य सम्बन्ध बताबैत छैक। न्युटन एहि नियमक उल्लेख अपन प्रख्यात पुस्तक, " प्राकृत्तिक दर्शनक गणितीय सिद्धान्त" ( मूल लयटिन भाषामे लिखल "Philosophiæ Naturalis Principia Mathematica") मे सर्वप्रथम, १६८७ मे कयने छलथि। हुनक ई नियम शास्त्रीय भौतिकशास्त्रक आधारशिला स्वरूप सदृश अछि।

नियम[सम्पादन करी]

प्रथम नियम[सम्पादन करी]

"कोनो वस्तु अपन विराम अवस्था वा बिनु दिशा परिवर्तन कयने समान गति अवस्था मे तखन पर्यन्त रहैत अछि जखन पर्यन्त ओहि पर कोनहु बाह्य बलक प्रभाव नहि होय।"

व्याख्या - ओ अवस्था वस्तुक जङत्वक अवस्था कहाबैत अछि जखन वस्तु अपन वर्तमान स्थिति त्यागबाक चेष्टा नहि करैत अछि अर्थात यदि ओ विराममे छैक त ओ गतिमे आबयकें चेष्टा नहि करत आओर यदि ओ गति मे अछि त न विराम मे आबयकें चेष्टा करत, न गतिमे परिवर्तनक आ न दिशामे परिवर्तनक। वस्तु बिना बाहरी प्रभावकें, सदैव अपन जङत्वक स्थिति मे रहैत अछि आ यदि ओ अपन एहि अवस्थाक त्याग करैत अछि कारण कोनहु बाह्य प्रभावक होयत छैक।

द्वितीय नियम[सम्पादन करी]

यदि कोनहु वस्तुकें उपर बाह्य बलक प्रभाव होयत छैक त ओ बल ओहि वस्तुक संवेग परिवर्तनक दरक साम्य होयत छैक।

व्याख्या- कोनहु वस्तुक संवेग ओहि वस्तुक द्रव्यमान आ वेगक गुणनफलक साम्य होयत छैक। एकर परिवर्तनक दर वस्तुक उपर प्रभावी बलक तुल्य होयत छैक। एकर गणितीय समीकरण निम्न छैक।


तृतीय नियम[सम्पादन करी]

दु वस्तुक परस्पर एक दोसरकें उपर प्रभावी बल अर्थात प्रथम द्वारा दोसर आ दोसर द्वारा प्रथम पर लागल बल परिमाण मे समान आ दिशामे एक दोसरक विपरीत होयत छैक।