वैद्यनाथ मिश्र 'यात्री'
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वैद्यनाथ मिश्र 'यात्री' | |
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जन्म | वैद्यनाथ मिश्र 30 जून, 1911 सतलखा, ज़िला : मधुबनी, भारत |
मृत्यु | 05 नवंबर, 1998 [१] ख्वाजा सराय, दरभंगा, बिहार, भारत |
उपनाम | यात्री, नागार्जुन |
पेशा | कवि, उपन्यासकार |
भाषा | मैथिली, हिन्दी, संस्कृत, पालि, बांग्ला |
राष्ट्रियता | भारत |
साहित्यिक आन्दोलन | प्रगतिवाद हिन्दी साहित्य मे |
उल्लेखनीय कामसभ | पत्रहीन नग्न गाछ, बलचनमा, युगधारा |
जीवनसाथी | अपराजिता देवी |
'नागार्जुन' वैद्यनाथ मिश्र 'यात्री' 1911-1998
जन्म अपन मामागाम सतलखा मे भेलन्हि, जे हुनकर गाम तरौनीक समीपहि मे अछि, जिला-दरभंगा । मूल नाम: वैद्यनाथ मिश्र । ई हिन्दी मे नागार्जुन नामे प्रख्यात भेलाह। हिनकर प्रमुख प्रकाशित कृति अछि: चित्रा, पत्रहीन नग्न गाछ (मैथिली कविता-संग्रह); पारो, बलचनमा, नवतुरिया (मैथिली उपन्यास); युगधारा, {Hindi}सतरंगे पंखोंवाली, प्यासी पथराई आंखें, खिचड़ी विप्लव देखा हमने, तुमने कहा था, हजार हजार बाहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, रत्नगर्भा, ऐसे भी हम क्या ! ऐसे भी तुम क्या ! (हिन्दी कविता-संग्रह); रतिनाथ की चाची, बलचनमा,{ publishedvbilingually} , नई पौध, बाबा बटेसरनाथ, वरुण के बेटे, दुखमोचन, कुम्भीपाक, अभिनन्दन, उग्रतारा, इमरतिया (हिन्दी उपन्यास); आसमान में चन्दा तैरे (कहानी संग्रह); भस्मांकुर (हिन्दी खण्ड काव्य); अन्नहीनम् क्रियाहीनम् (निबन्ध-संग्रह); गीत गोविन्द; मेघदूत; विद्यापति के गीत, विद्यापति की कहानियां (अनुवाद) । ’पत्रहीन नग्न गाछ’ लेल १९६८ मे साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त । यायावरी जीवन । मैथिली प्रतिनिधिक रूप मे रूस भ्रमण । नागार्जुन (स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” ), हिन्दी आ' मैथिली कवि, १९९४ ई. मे साहित्य अकादेमीक फेलो (भारत देशक सर्वोच्च साहित्यक पुरस्कार)। स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” केर जन्म १९११ ई. मे अपन मामागाम सतलखा मे भेलन्हि, जे हुनकर गाम तरौनीक समीपहि मे अछि। यात्रीजी अपन गामक संस्कृत पाठशाला मे पढ़ए लगलाह, फेर ओऽ पढ़बा' लेल वाराणसी आऽ कलकत्ता सेहो गेलाह आऽ संस्कृतमे “साहित्य आचार्य” केर उपाधि प्राप्त कएलन्हि। तकर बाद ओ कोलम्बो लग कलनिआ स्थान गेलाह पाली आऽ बुद्ध धर्मक अध्ययनक लेल। ओतए ओऽ बुद्धधर्म मे दीक्षित भए गेलाह आऽ हुनकर नाम पड़लन्हि नागार्जुन। यात्रीजी मार्क्सवाद सँ प्रभावित छलाह। १९२९ ईस्वीक अन्तिम मास मे मैथिली भाषा मे पद्य लिखब शुरू कएलन्हि यात्रीजी। १९३५ ई. सँ हिन्दी मे सेहो लिखए लगलाह। स्वामी सहजानन्द सरस्वती आऽ राहुल सांकृत्यायनक संग ओऽ किसान आन्दोलन मे संलग्न रहलाह आऽ १९३९ सँ १९४१ धरि एहि क्रम मे विभिन्न जेलक यात्रा कएलन्हि। हुनकर बहुत रास रचना जे महात्मा गाँधीक मृत्युक बाद लिखल गेल छल, प्रतिबन्धित कए देल गेल। भारत-चीन युद्ध मे कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चीन केँ देल समर्थनक बाद यात्रीजीक मतभेद कम्युनिस्ट पार्टी सँ भए गेलन्हि। जे.पी. अन्न्दोलन मे भाग लेबाक कारण आपात्काल मे हिनका जेल मे ठूसि देल गेल। यात्रीजी हिन्दी मे बाल साहित्य सेहो लिखलन्हि। हिन्दी आऽ मैथिलीक अतिरिक्त बांग्ला आऽ संस्कृत मे सेहो हिनकर लेखन आएल। मैथिलीक दोसर साहित्य अकादमी पुरस्कार १९६९ ई. मे यात्रीजी केँ हुनकर कविता संग्रह “पत्रहीन नग्न गाछ”पर भेटलन्हि। १९९४ ई.मे हिनका साहित्य अकादमीक फेलो नियुक्त कएल गेल। यात्रीजी जखन २० वर्षक छलाह तखन १२ वर्षक कन्या सँ हिनकर विवाह भेल। हिनकर पिता गोकुल मिश्र अपन समाज मे अशिक्षितक गिनती मे छलाह, मुदा चरित्रहीन छलाह। यात्रीजीक नेनपनक स्मृति छन्हि, जे हुनकर पिता कोना हुनकर अस्वस्थ आऽ ओछाओन धेने माय पर कुरहड़ि लए मारबाक लेल उठल छलाह, जखन ओऽ बेचारी हुनका सँ अपन चरित्रहीनता छोड़बाक गोहारि कए रहल छलीह। यात्रीजी मात्र छओ वर्षक छलाह जखन हुनकर माए हुनका छोड़ि प्रयाण कए गेलीह। यात्रीजी केँ अपन पिताक ओऽ चित्र सेहो रहि-रहि सतबैत रहलन्हि जाहि मे हुनका सँ मातृवत प्रेम करएबाली हुनकर विधवा काकीक, हुनकर पिताक अवैध सन्तानक गर्भपात मे, मृत्यु भए गेल छलन्हि । के एहन पाठक होएत जे यात्रीजीक हिन्दी मे लिखल “रतिनाथ की चाची” पढ़बाक काल बेर-बेर नहि कानल होएताह। पिता-पुत्रक ई घमासान एहन बढ़ल जे पुत्र अपन अवयस्क-विवाहिता केँ पिता लग छोड़ि वाराणसी प्रयाण कए गेलाह।
"कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप
हम टा संतति, से हुनक पाप
ई जानि होइन्हि जनु मनस्ताप
अनको बिसरक थिक हमर नाम
माँ मिथिले, ई अंतिम प्रणाम!" (काशी/ नवंबर १९३६) काशी सँ श्रीलंका प्रयाण
“कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप” ई कहि यात्रीजी अपन पिताक प्रति सभ उद्गार व्यक्त कए दैत छथि।
१९४१ ई. मे यात्रीजीक अर्द्धांगिनी-अपराजिता- लग आबि गेलथि। १९४१ ई. मे यात्रीजी दू टा मैथिली कविता लिखलन्हि- “बूढ़ वर” आऽ विलाप आऽ एकरा पम्फलेट रूप मे छपबाए ट्रेनक यात्री लोकनि केँ बेचलन्हि।जीविकाक ताकि मे सौँसे भारत दुनू प्राणी घुमलाह। पत्नीक जोर देलापर बीच-बीच मे तरौनी सेहो घुमि कए आबथि। आऽ फेर अएल १९४९ ई. अपना संग लेने यात्रीजीक पहिल मैथिली कविता-संग्रह “चित्रा”। १९५२ ई. धरि पत्नी संग मे घुमैत रहलथिन्ह, फेर तरौनी मे रहए लगलीह। यात्रीजी बीच- बीच मे आबथि। अपराजिता सँ यात्रीजी केँ छह टा सन्तति भेलन्हि, आऽ सभक सभ भार ओऽ अपना कान्ह पर लेने रहलीह। यात्रीजी दमा सँ पीड़ित रहैत छलथि।
हम जखन दरभंगा मे पढ़ैत रही तँ यात्रीजी ख्वाजा सराय मे रहैत छलाह। हमरा मोन अछि जे मैथिलीक कोनो कार्यक्रम मे यात्रीजी आएल छलाह आऽ कम्युनिस्ट पार्टीक समर्थक सभ एजेन्डा छीनि लेने छल। अगिले दिन यात्रीजी अपना केँ ओहि धोखा-धोखी मे गेल सभाक कार्यवाही सँ हटा लेलन्हि। एमर्जेन्सी मे जेल गेलाह तँ आर.एस.एस. केर कार्यकर्ता लोकनि सँ जेल मे भेँट भेलन्हि। आऽ जे.पी.क सम्पूर्ण क्रान्तिक विरुद्ध सेहो जेलसँ बाहर अएलाक बाद लिखलन्हि यात्रीजी। यात्रीजी मैथिली मे बैद्यनाथ मिश्र "यात्री" आऽ हिन्दीमे नागार्जुन केर नाम सँ रचना लिखलन्हि।
“पृथ्वी ते पात्रं” १९५४ ई. मे “वैदेही”मे प्रकाशित भेल छल, हमरा सभक मैट्रिकक सिलेबसमे छल। यात्रीजी लिखैत छथि-
“आन पाबनि तिहार तँ जे से। मुदा नवान्न निर्भूमि परिवार केँ देखार कए दैत छैक। से कातिक अबैत देरी अपराजिता देवीक घोघ लटकि जाइन्हि। कचोटेँ पिपनियो नहि उठा होइन्ह ककरो दिस! बेसाहल अन्न सँ कतउ नवान्न भेलइए”?
आऽ अन्तमे यात्रीजीक संस्कृत पद्य:-
वासन्ती कनकप्रभा प्रगुणिता
पीतारुर्णेः पल्लवैः
हेमाम्भोजविलासविभ्रमरता
दूरे द्विरेफाः स्ता
यैशसण्डलकेलिकानन कथा
विस्मरिता भूतले
छायाविभ्रमतारतम्यतरलाः
तेऽमी “चिनार” द्रुमाः॥
बसंतक स्वर्णिम आभा द्विगुणित भऽ गेल अछि पीयर-लाल कोपड़ सँ। स्वर्णकाल भ्रम मे भौंरा सभ एकरा सँ दूर-दूर रहैत अछि। नन्दनवनक विहार जे पृथ्वी पर बिसारि दैत छथि, छाह झिलमिल घटैत-बढ़ैत जिनक डोलब अछि चंचल आ तरल। ओही चिनार केँ हम देखने छी अडिग भेल ठाढ़।
एकरो देखु
[सम्पादन करी]- ↑ South Asia, Hindi poet, Nagarjun, dead सङ्ग्रहित २०१३-०१-३० वेब्याक मेसिन बीबीसी, ५ नवंबर, १९९८.