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वानीरा गिरि

मैथिली विकिपिडियासँ, एक मुक्त विश्वकोश
(बानिरा गिरीसँ पुनर्निर्देशित)
वानीरा गिरि
जन्म (१९४६-०४-११) अप्रैल ११, १९४६ (उमर ७८)
खर्साङ्ग, दार्जिलिङ्ग
राष्ट्रियतानेपालनेपाली
शिक्षाएम.ए., एम.एड., विद्यावारिधि (नेपाली साहित्य)
व्यवसायशिक्षण, लेखन
प्रसिद्धि कारणकविता, उपन्यास
उल्लेखनीय कार्यसभ
कारागार, विर्बन्ध, जीवन थामहरु, एउटा जिउँदो जङ्गबहादुर, मेरो आविष्कार
जीवनसाथी(सभ)शङ्कर गिरी
बालबच्चाअपूर्ण गिरी, अपराजिता गिरी
अभिभावक(सभ)इन्द्रराज गिरी, जानकीदेवी
पुरस्काररत्नश्री स्वर्ण पदक
गोरखा दक्षिण बाहु चौथा
लोकप्रिया देवी पुरस्कार-२०४८
साझा पुरस्कार - २०५६
महाकवि देवकोटा पुरस्कार - २०७३


वानीरा गिरि (अङ्ग्रेजी: Banira Giri) क जन्म सन् १९४६, अप्रिल ११ विक्रम सम्बत्: २००३ बैशाख २२ गते शैन दिन भेल छल ।[][] ओ नेपाली भाषासाहित्यक समकालीन पुस्ताक सशक्त प्रतिनिधि स्रष्टा छी ।[]नेपाली साहित्यमे पीएच्.डी. करल प्रथम नारी स्रष्टा सेहो छी ।[][][]

प्रारम्भिक जीवन

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पिता इन्द्रराज गिरि आ माता जानकीदेवीक ६ टा सन्तानमध्ये सबसँ छोटकी पुत्रीक रूपमे वानीरा गिरिक जन्म भेल छल । बानिराक जन्म दार्जिलिङक खरसाङमे संवत् २००३ वैशाख २२ गते शैनदिन भेल छल । बाल्यकालमे वानीरा गिरिक नाम सत्यदेवी छल । ओ अक्षय तृतीयाक दिन जन्मलाक कारण बानिराक सत्यदेवी कहल जाएत छल । वानीरा गिरि सात वर्षक छल जब बानिराक माताक स्वर्गीयवास भेल छल । पुत्रीक पढाइलेखाइसँ इन्द्रराज गिरि बहुत सन्तुष्ट छल जेहि कारण ओ अपन पुत्री भविष्यमे डाक्टर बनाबैक सोच राखने छल । सेहिअनुरूप वानीरा आई.एस्सी.पढलक । आई.एस्सीक अन्तिम परीक्षा आबैक पहिले अनिराक पिताक स्वर्गारोहण भेल छल ।[]

शिक्षा आ कार्य जीवन

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वानीरा गिरि चाइर वर्षके छल जब ओ नेपाली वर्णमाला पढ्वाक लेल शुरुवात केनेए छल । तै समयमे ओ अपने गाउँक स्कट मिसन स्कुलमे भर्ना भेल छल । ओ स्कुलमे बानिरा छ कक्षा उत्तीर्ण करलक । ओ कक्षा एकसँ छ धरि पढाइमे प्रथम होएत रहल । तेहि पश्चात बानिराक ओहि ठामक सेन्ट जोसेफ स्कुलमे स्थानान्तरण कएल गेल छल । ओहो ठाम बानिरा कक्षामे प्रथम आ कहियो द्वितीय होएत छल । साथे ओहि स्कुलसँ ओ २०१६ सालमे एस.एल.सी. पास करलक । ओ स्नातक करैक पश्चात एम.ए. पढ् २०२२ सालमे काठमाडौं आएल आ एम.ए.मे भर्ना लेलक । भारतीय विद्यार्थीक नेपाली पढ् लेल श्री ५ महेन्द्र छात्रवृत्तिअन्तर्गत ओ भर्ना भेल छल । ओ त्रिभुवन विश्वविद्यालयसँ एम.एड्. सेहो करलक । पढाइमे बानिराक हौसला आर बुलन्द होएत गेल । तेहि पश्चात ओ विद्यावारिधि सेहो करलक आ अपन मन पसन्दक कविक पीएच्.डी.क विषय बनेलक ‘गोपालप्रसाद रिमालक काव्यमे स्वच्छन्दतावाद' । एहि विषयमे वानीरा पीएच्.डी. करलक आ नेपाली साहित्यमे पीएच्.डी. करला ओ प्रथम नारी भेल छल ।[][]

व्यक्तिगत जीवन

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काठमान्डू एलाक बाद वानीरा गिरिक शङ्कर गिरिसँ परिचय भेल आ अन्तत: २०२३ सालमे इन्जिनियर गिरिसँ बानिराक वैवाहिक जीवन सेहो स्थापित भेल । बानिराक एक पुत्र अपूर्ण आ एक पुत्री अपराजिता अछि ।[]

साहित्यिक यात्रा

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वानीरा गिरि बाल्यकालसँ कवितालेखनमे रुचि राखैत छल । एगार वर्षक उमेरमे ओ कवितालेखनममे पुरस्कृत भगेल छल । बानिराक विषयमे ईश्वरवल्लभ कहने छल “बहिन वानीरा एकटा सशक्त कवयित्री छल । वानीरा भविष्यक काव्यभूमिक राप हम पहिले देखने रही । जेहिकारण अगमसिंह गिरिक आयोजना कएल कविगोष्ठीमे हम वानीराक पुरस्कारस्वरूप किछ कृति देनेए रही ।” ओ जेना कथा, कविता लिखैत छल तहिना स्कुलमे आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रममे सहजतापूर्वक भाग लएत छल । तेसर कक्षामे ओ सर्वप्रथम कलाकारक भूमिका सेहो निर्वाह केनेए छल । चाइर कक्षामे सेहो ओ नाटकमे अपन भूमिका देखेने छल । चाहे वक्तृत्वकलामे होए, चाहे गायनमे होए, चाहे नृत्यमे होए आ चाहे नाटकमे होए कोनो विषयमे भाग लेलाक बाद ओ प्रतियोगितामे प्रथम होएत छल आ कही कतौ द्वितीय सेहो होएत छल । कविताप्रतियोगितामे सेहो वानीराक स्तर अग्रपङ्क्तिमे रहैत छल । ओ अपना साथे साथ बहुत लोगसभक सेहो कविता लिखैक लेल प्रोत्साहन करैत छल । उदाहरणक लेल ओ ‘मुटु’ नामक भित्तेपत्रिक सेहो निकालक । एघार वर्षक उमेरमे ओ भित्तेपत्रिक सम्पादन आ प्रकाशन सेहो करैत छल । वानीरा गिरि बाल्यकालसँ अपनाक साहित्यदिस गेलाक बादो पहिलबेर वानीरा औपचारिक कविता २०२० सालमे छापल गेल छल । डी.के. खालिङक सम्पादनमे दार्जिलिङ्गसँ प्रकाशित ‘दियो’ मा ‘मेरो साथी भन्छ’ शीर्षक कविता छापलाक बाद ओ जनसमक्ष प्रस्तुत भेल छल । तेकर बाद ओ कवितालेखनमे क्रमश: चम्कैत गेल । दार्जिलिङक विभिन्न पत्रपत्रिकाक अतिरिक्त काठमाडौंक सेहो अनगिन्ती पत्रपत्रिकामे वानीराक रचनासभ प्रकाशित होएत रहल । कृतिकारक रूपमे ओ २०३१ सालमे देखा परल । तै समयमे वानीराक ‘एउटा एउटा जिउँदो जङ्गबहादुर’ नामक कवितासङ्ग्रह प्रकाशित भेल । तेकर बाद २०३४ सालमे वानीराक दोसर कवितासङ्ग्रह प्रकाशित भेल ‘जीवन: थायमरू’ आ २०३५ सालमे वानीराक ‘कारागार’ नामक उपन्यास प्रकाशनमे आएल । ‘मेरो आविष्कार’ नामक वानीराक आत्मकाव्य सेहो २०३४ सालमे प्रकाशित भेल । तहिना २०४४ सालमे ओ ‘निर्बन्ध’ नामक उपन्यास प्रकाशनमे आनलक आ २०५६ मे वानीरा दोसर उपन्यास ‘शब्दातीत शान्तनु’ प्रकाशित भेल । वानीराक ‘शब्दातीत शान्तनु’ नेपाली साहित्यमे बहुत चर्चित बनल । वानीराक ‘शब्दातीत शान्तनु’ कृति संवत् २०५६ क साझा पुरस्कार सेहो प्राप्त करलक । वानीराक पाएल पुरस्कारक लेखाजोखा करबैत ओ दार्जिलिङसँ काठमाडौं आएल वर्ष नेपाल राजकीय प्रज्ञाप्रतिष्ठानसँ आयोजित कविता महोत्सवमे द्वितीय भेल छल । ओ प्रबल गोरखा दक्षिण बाहुसँ सेहो विभूषित भेल छल । वानीरा २०३३ सालमे अफ्रो एसियाली लेखक सम्मेलनमे भाग लेब सोभियत रुस गेल छल ।[]

लेखनशैली

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डा. वानीरा गिरिक कवितामे गहनतासँ भरल रहैत अछि , वास्तविकतासँ छुवल रहैत अछि आ यथार्थतासँ भरल रहैत अछि । ओ कवितामे जीवन लिखैत अछि आ जीवनमे कविता । गिरिक भावभावमे अर्थक बाध जोडल रहैत अछि । जेहि कारणओ कवितामय धर्तीक गीत लिखैत अछि । वानीराक कवितामे एकदिस दर्शनक साँध लगाएल रहैत अछि त दोसर दिस वानीराक काव्यात्मक विम्बमे फुल फुलल रहैत अछि । ओ जीवन आ जगतक प्रसङ्गक अलङ्कारमय बनबैत अछि ।[]

लेखन एवम मुख्य कृतिसभ

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कविता सङ्ग्रह

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  • एउटा जिउँदो जङ्गबहादुर
  • जीवन: थामहरू - २०३४
  • शब्दातीत शान्तनु - २०५६

उपन्यास

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  • कारागार - २०३५[]
  • निर्बन्ध - २०४४

आत्मकथा

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  • मेरो आविष्कार - २०४१

पुरस्कार/मान-सम्मान/पदक

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सन्दर्भ सामग्रीसभ

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  1. "Banira Giri - Nepali poet: The South Asian Literary Recordings Project (Library of Congress New Delhi Office)"। Loc.gov। January 11, 2016। अन्तिम पहुँच 2018-04-15
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बाहिरी लिङ्कसभ

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