उर्वशी

मैथिली विकिपिडियासँ, एक मुक्त विश्वकोश
उर्वशी आ पुरुरवा।

साहित्यपुराणमे उर्वशी सौन्दर्यक प्रतिमूर्ति रहल अछि। स्वर्गक एही अप्सराक उत्पत्ति नारायणक जंघासँ मानल जाइत अछि। पद्मपुराणक अनुसार हिनकर जन्म कामदेवक उरुसँ भेल अछि। श्रीमद्भागवतक अनुसार ई स्वर्गक सर्वसुन्दर अप्सरा छल। एक बेर इन्द्रक राजसभामे नाचैत समय ओ राजा पुरुक प्रति क्षण भर के लेल आकर्षित भ गेल। एही कारण हुनकर नृत्यक ताल बिगडि गेल। ई अपराधक कारण राजा इन्द्र रुष्ट भ ओकरा मर्त्यलोक मे रहै के अभिशाप द देलक। मृत्यु लोकमे ओ पुरुके अपन पति चुनलक् मुद्दा शर्त ई रखलक् कि ओ पुरुके नग्न अवस्थामे देख लै या पुरुरवा ओकर इक्षाक प्रतिकूल समागम करे अथवा ओकर दुई मेष स्थानान्तरित करि देल जाए तँ ओ हुनकासँ सम्बन्ध विच्छेद करि स्वर्ग जाए के लेल स्वतन्त्र भ जाएत्। ऊर्वशी आ पुरुरवा बहुत समय धरि पति पत्नीक रूपमे साथ-साथ रहल। हिनकर नौ पुत्र आयु, अमावसु, श्रुतायु, दृढ़ायु, विश्वायु, शतायु आदि उत्पन्न भेल। दीर्घ अवधि बीतै पर गन्धर्वसभक ऊर्वशीक अनुपस्थिति अप्रीय प्रतीत होए लगल। गन्धर्वसभ विश्वावसुक ओकर मेष चोरावे के लेल भेजलक्। ओ समय पुरुरवा नग्नावस्थामे छल। आहट पावि ओ ओही अवस्थामे विश्वाबसुक पकडि के लेल दौडल। अवसरक लाभ उठा गन्धर्वसभ ओहि समय प्रकाश करि देलक। जाहिसँ उर्वशी पुरुरवाक नंगा देख लेलक। आरोपित प्रतिबन्धसभक टूटि जाए पर ऊर्वशी श्रापसँ मुक्त भ गेल आ पुरुरवाक छोडि स्वर्ग लोक चलि गेल। महाकवि कालीदासक संस्कृत महाकाव्य विक्रमोर्वशीय नाटकक कथाक आधार एही प्रसंग अछि। आधुनिक हिन्दी साहित्यमे रामधारी सिंह दिनकर एही कथाक अपन काव्यकृतिक आधार बनौलक् आ ओकर शीर्षक सेहो रखलक् ऊर्वशी। महाभारतक एकटा कथाक अनुसार एक बेर जखन अर्जुन इन्द्रक पास अस्त्र विद्याक शिक्षा लै के लेल गेल तँ उर्वशी हुनका देखि मुग्ध भ गेल। अर्जुन ऊर्वशीक मातृवत देखलक्। अतः ओकर इच्छा पूर्ति नै करै के कारण। हिनका शापित भ एक वर्ष धरि पुंसत्वसँ वञ्चित रहै पडल।

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बाह्य जडीसभ[सम्पादन करी]

एहो सभ देखी[सम्पादन करी]